जनजातीय मामलों के मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि राज्य मंत्रिमंडल ने तय किया है कि संग्रहालय का नाम महान स्वतंत्रता सेनानी रानी गाइदिन्ल्यू के नाम से रखा जाए और संग्रहालय की स्थापना रानी गाइदिन्ल्यू के गांव लुआंगकाओ में की जाए. बता दें कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय की तरफ से इस परियोजना के लिए लगभग 15 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मौके पर कहा कि हमारे देश को आजाद कराने में सभी वर्गों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि, भारत की आजादी में आदिवासी आबादी के संघर्षों और बलिदानों से शहरी अनजान है. यही वजह है कि पीएम मोदी ने विभिन्न राज्यों में इस तरह के संग्रहालय बनाने का फैसला किया
जनजातीय मामलों का मंत्रालय 15 नवंबर से शुरू हुआ आजादी का अमृत महोत्सव सप्ताह मना रहा है. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस के रूप में लान्च किया था. रानी गाइदिन्ल्यू को साल 1972 में ताम्रपत्र, साल 1982 में पद्म भूषण, साल 1983 में विवेकानंद सेवा सम्मन, साल 1991 में स्त्री शक्ति पुरस्कार और साल 1996 में भगवान बिरसा मुंडा पुरस्कार से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था.
भारत सरकार ने 1996 में रानी गाइदिन्ल्यू का एक स्मारक टिकट भी जारी किया था. साल 2015 में उनके जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर प्रधानमंत्री ने 100 रुपये का एक सिक्का और पांच रुपये का एक प्रचलन सिक्का जारी किया था. विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारतीय तटरक्षक बल ने 19 अक्टूबर 2016 को एक फास्ट पेट्रोल वेसल आइसीजीएस रानी गाइदिन्ल्यू को कमीशन किया था.
रानी गाइदिन्ल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर राज्य के तामेंगलोंग जिले के ताओसेम उप-मंडल के लुआंगकाओ गांव में हुआ था. वे 13 साल की उम्र में जादोनांग से जुड़ी हुई थीं और उनके सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन में उनकी लेफ्टिनेंट बन गईं. उन्हें 1926 या 1927 के आसपास जादोनांग के साथ उनके चार साल के जुड़ाव ने अंग्रेजों के खिलाफ सेनानी बनने के लिए तैयार किया.
गाइदिन्ल्यू ने जादोनांग को फांसी दिए जाने के बाद आंदोलन का नेतृत्व संभाला. जादोनांग की शहादत के बाद गाइदिन्ल्यू ने अंग्रेजों के खिलाफ एक गंभीर विद्रोह शुरू किया, जिसके लिए उन्हें 14 साल के लिए अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया और आखिरकार 1947 में रिहा कर दिया गया था.
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